"क्रेशर" में "क्रश" होते मापदंड :
“मलेथा”- वीर शिरोमणि माधों सिंह भंडारी की
कर्मस्थली जहाँ की गाथा इन दो पंक्तियों में गायी जाती है- ‘एक सिंह रण-वण, एक
सिंग गाय का/ एक सिंग माधो सिंग और सिंग काहे का’ I किवदंती
है कि अपने गॉव में जल
की आपूर्ति के लिए आस्था के नाम पर अपने पुत्र की बलि वीर माधो सिंह भंडारी ने दी
व आज तक इस गॉव के खेत हरियाली से लहराते रहे I पूरे
राज्य में मलेथा की कृषि भूमि अपने आप में गाथा गाती रही है I
विगत एक महीने से इसी भूमि पर ग्रामीण पुनः
माधो सिंह भंडारी को याद करते हुए ग्राम सभा में लग रहे स्टोन क्रशरों का विरोध
करते हुए नजर आ रहे
हैं I ९ वार्ड की जनता एक स्वर में हक़ हकूक की बात करते
हुए अपने गॉव के ऊपर आने वाले संकटों के खिलाफ एकजुट हुई है I पहाड़
में किसी भी सामाजिक बदलाव में अहम भूमिका निभाने वाली मात्र शक्ति राष्ट्रीय
राजमार्ग पर आन्दोलनरत है I
ग्राम सभा मलेथा में पांच स्टोन क्रेशर, दो
वर्तमान में चलायमान व प्रस्तावित 3 स्टोन
क्रशर सरकारी मानको को ताक पर रख कर कुछ पूंजीपतियों और कुछ राजनेताओं के हितों के
लिए लगाए जा रहे
हैं I पर्यावरण, स्वास्थय, जल, जंगल, वनस्पति, कृषि, पशु, इत्यादि
के संरक्षण की जगह हानि पंहुचाने का जरिया बन गए है यह क्रशर उद्योग I क्रशरों के संचालन से जर्जर पहाड़ और कमजोर हो जाएंगे
जिसके चलते बरसात के दौरन भूस्खलन के रूप आपदा आने आशंका रहेगी I कुछ
दिन पूर्व हिमालय दिवस के दिन राज्य की राजधानी में संकल्प लेने वाले सारे राजनेता आज इस उद्योग से हिमालय
को पंहुचाने वाली क्षति पर मौन है I
वर्तमान में मोलाक तोक में चल रहे दो क्रशर के
लिए के लिए ली गयी भूमि में लगभग 50
वृक्ष काट दिए गए जिसके लिए कोई अनुमति नहीं ली गयी और न ही वन विभाग द्धारा कोई
कार्यवाही की गयी, जबकि कुछ समय पूर्व वन विभाग द्धारा एक ग्रामीण पर 30000
रूपए का जुर्माना पेड़ काटने काटने के लिए
लगाया गया I पूरे इलाके में 5 से
ज्यादा क्रशरों से लगने के कारण जो वातावरण दूषित होगा वो यहाँ के वनस्पति को
समाप्त करेगा ही साथ में पक्षियों के आवागमन पर रोक लगाएगा I 9000 नाली
में फैले हुए हरे भरे खेत जो आज तक माधो सिंह भंडारी के वीर गाथा को गाते रहें
हैं आज क्रशरों के कारण अपने अस्तित्व को
खतरे में पाते देख रहें हैं I वायु प्रदूषण से कृषि में तो फर्क पड़ेगा ही साथ में ग्रामीणो को दूषित
हवा लेने के लेने के लिए बाध्य होना पड़ेगा जिससे आम जन के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ेगा I चोपड़िया
तोक में प्रस्तावित 2 स्टोन क्रशर जो निर्माणाधीन है नदी से 50 मीटर
की दुरी पर है और आबादी से ३० मीटर की दूरी
में, जिसके चलते ग्रामीणों को मजबूरीवश
भविष्य में पलायन करना पड़ सकता है, 15 से 20 परिवार
अभी से अपने आप को संकट में देख रहें हैं I गॉव
का एक पानी का श्रोत जिसपे गर्मियों के दौरान पूरा गॉव आश्रित है वो क्रशर से महज 40 मीटर की दूरी पर है जिससे यह जल दूषित तो
होगा ही साथ में श्रोत को ख़त्म भी कर देगा I ऐसे
में जल संरक्षण को लेकर सरकारी घोषणाएं व
चिंतन मात्र एक दिखावा सा प्रतीत होता है I
क्रशर एक उधोग है और मलेथा में कहीं भी उधोग/ ओधोगिक क्षेत्र नहीं है ऐसे में उधोग
गॉव की सीमा से दूर व कृषि भूमि या जंगल से दूर कहीं बंजर भूमि में लगाया जाना
चाहिए था और साथ में जो भूमि अर्जित की है उसके आस पास के भू स्वामी से अनापत्ति
संस्तुति लेनी आवश्यक थी I यह सारे प्रावधान मानो सिर्फ कागज़ तक ही सीमित है, मलेथा
में न तो क्रेशर गॉव से दूर लगाया गया और न ही किसी प्रकार संस्तुति ली गई I सरकारी
नियमों अनुसार एक जिले में 7
क्रशरों की अनुमति है, मलेथा
में अपने आप में 5 क्रशरों लगाए जाने तो पूरे जिले में अनुमान लगाया जा
सकता है I टिहरी जिले में अलकनंदा, भागीरथी, भिलंगा
व देवप्रयाग से गंगा के रूप में बड़ी नदियां बहती है जो ऐसे क्रशरों के लिए बहुत
सहायक होती हैं I
ऐसी परिस्तिथि में जहाँ जनता के हितों को दर
किनारे किया जा रहा हो, ग्रामीणों के नैसर्गिक रहन सहन को नष्ट
किया जा रहा हो, सिर्फ
उधोगपति या पूंजीपतियों के हितों की रक्षा को प्राथमिकता दी जा रही हो ऐसी स्तिथि में सरकारी तंत्र सवाल उठना लाजमी है, राजनेताओं
की निहित स्वार्थ का अंदेशा कतई गलत नहीं ठहरता I देखना यह है की क्या एक बार फिर
वीरांगनाओं की भूमि में हो रहे संघर्ष इस तंत्र के जंजाल को तोड़ पायेगा या फिर वीर
माधो सिंह भंडारी की सिर्फ अब गाथा ही गायी
जायेगी I
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